गांवों में विकास गायब, सरपंच बेबस — आखिर कहां अटक गई पंचायतों की राशि?”

कोरबा:- ग्राम पंचायतें देश के ग्रामीण विकास की रीढ़ मानी जाती हैं — लेकिन कोरबा जिले की स्थिति फिलहाल इसके ठीक उलट नजर आ रही है। पंचायत चुनाव सम्पन्न हुए नौ माह बीत चुके हैं, फिर भी जिले की अधिकांश ग्राम पंचायतों को अब तक मूलभूत एवं वित्त आयोग की राशि प्राप्त नहीं हुई है। नतीजतन, गांवों के विकास कार्य पूरी तरह ठप पड़ गए हैं, वहीं ग्रामीण अपने निर्वाचित सरपंचों और पंचायत प्रतिनिधियों पर सवाल उठाने लगे हैं।
गांवों में सड़कों की मरम्मत, नालियों का निर्माण, स्ट्रीट लाइट, पेयजल व्यवस्था जैसे आवश्यक कार्य अधर में लटके हुए हैं। सरपंचों का कहना है कि “जब पंचायत के पास फंड ही नहीं है, तो हम क्या विकास करेंगे? हमारे हाथ बंधे हुए हैं।”
कई सरपंचों ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि ग्राम पंचायतों का स्वयं का राजस्व बहुत सीमित है। अधिकतर योजनाएं राज्य और केंद्र सरकार से मिलने वाले अनुदान पर निर्भर रहती हैं। ऐसे में अनुदान की राशि समय पर न मिलने से गांवों का विकास रुक गया है और जनता की उम्मीदें टूटने लगी हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने जनप्रतिनिधियों को चुना ताकि गांवों की मूलभूत जरूरतें पूरी हों, लेकिन अब “सरपंच सिर्फ नाम के रह गए हैं, काम के नहीं।” स्थिति यह है कि पंचायतें बिजली, पानी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं तक सुधारने में असमर्थ हैं।
वहीं, सरपंचों ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि शासन और प्रशासन को तत्काल पहल करनी चाहिए। जब तक मूलभूत एवं टाइड- अनटाइड फंड जारी नहीं होंगे, पंचायतों का विकास रफ्तार नहीं पकड़ सकेगा। उनका कहना है —
“जब तक गांव मजबूत नहीं होंगे, तब तक जिला और राज्य मजबूत नहीं बन सकते। पंचायतों में ठप पड़े विकास कार्यों को गति देने के लिए सरकार को तत्काल निर्णय लेना चाहिए।”
गांवों में पसरी निराशा और असंतोष यह साफ संकेत दे रहा है कि यदि जल्द ही आर्थिक अवरोध दूर नहीं किया गया, तो पंचायत व्यवस्था का उद्देश्य — “गांव-गांव में आत्मनिर्भरता और विकास की गारंटी” — केवल कागजों तक सीमित रह जाएगा।




